भक्त जनाबाई की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त जनाबाई
Fetch error
Hmmm there seems to be a problem fetching this series right now. Last successful fetch was on January 09, 2024 10:35 ()
What now? This series will be checked again in the next day. If you believe it should be working, please verify the publisher's feed link below is valid and includes actual episode links. You can contact support to request the feed be immediately fetched.
Manage episode 394239082 series 3547964
भक्तिमती जनाबाई सुविख्यात भक्त श्रेष्ठ श्रीनामदेवजीके घरमें नौकरानी थी। घरमें झाड़ू देना, बरतन माँजना कपड़े धोना और जल भरना आदि सभी काम उसे करने पड़ते थे। ऋषि-मुनियोंकी सेवामें रहकर पूर्वजन्ममें जैसे देवर्षि नारदजी भगवान्के परम प्रेमी बन गये थे, वैसे ही भक्तवर नामदेवजीके घरमें होनेवाली सत्सङ्गति तथा भगवच्चचकि प्रभावसे जनाबाईके सरल हृदयमें भी भगवत्प्रेमका बीज अङ्कुरित हो गया। उसकी भगवन्नाम में प्रीति हो गयी; जिसमें जिसकी प्रीति होती है, उसे वह भूल नहीं सकता। इसी तरह जनाबाई भी भगवन्नामको निरन्तर स्मरण करने लगी। ज्यों-ज्यों नामस्मरण बढ़ा, त्यों-ही-त्यों उसके पापपुञ्ज जलने लगे और प्रेमका अङ्कुर पल्लवित होकर दृढ़ वृक्षके रूपमें परिणत होने लगा तथा उसकी जड़ सब ओर फैलने लगी!
एकादशीका दिन है, नामदेवजीके पर भक्तोंकी मण्डली एकत्र हुई है, रातके समय जागरण हो रहा है। नामकीर्तन और भजनमें सभी मस्त हो रहे हैं। कोई कीर्तन करता है, कोई मृदङ्ग बजाता है, कोई करताल और कोई झाँझ बजाता है। प्रेमी भक्त प्रेममें तन्मय हैं, किसीको तन मनकी सुधि नहीं है कोई नाचता है, कोई गाता है, कोई आँसू बहा रहा है, कोई मस्त हंसीहँस रहा है। कितनी रात गयी, इस बातका किसीको खयाल नहीं है। जनाबाई भी एक कोनेमें खड़ी प्रेममें मत्त होकर झूम रही है। इस आनन्दाम्बुधिमें डूबे रात बहुत ही जल्दी बीत गयी। उषाकाल हो गया। लोग अपने-अपने घर गये। जनाबाई भी अपने घर आयी।
घर आनेपर जनाबाई जरा लेट गयी। प्रेमकी मादकता अभी पूरी नहीं उतरी थी, वह उसीमें मुग्ध हुई पड़ी रही। सूर्यदेव उदय हो गये। जनाबाई उठी और सूर्योदय हुआ देखकर बहुत घबरायी। उसने सोचा, मुझे बड़ी देर हो गयी। मालिकके घर झाडू- बरतनकी बड़ी कठिनाई हुई होगी, वह हाथ-मुँह धोकर तुरंत कामपर चली गयी।
पूरा विलम्ब हो चुका था, जना घबरायी हुई जल्दी जल्दी हाथका काम समाप्त करनेमें लग गयी। परंतु हड़बड़ाहटमें काम पूरा नहीं हो पाता। दूसरे, एक काममें विलम्ब हो जानेसे सिलसिला बिगड़ जानेके कारण सभीमें विलम्ब होता है; यहाँ भी यही हुआ। झाड़ देना है, पानी भरना है, कपड़े धोने हैं, बरतन माँजने हैं; और न मालूम कितने काम हैं।
कुछ काम निपटाकर वह जल्दी-जल्दी कपड़े लेकर उन्हें धोनेके लिये चन्द्रभागा नदीके किनारे पहुँची। कपड़े धोने में हाथ लगा ही था कि एक बहुत जरूरी काम यादआ गया, जो इसी समय न होनेसे नामदेवजीको बड़ा कष्ट होता; अवएव वह नदीसे तुरंत मालिकके घरकी ओर चली। रास्ते में अकस्मात् एक अपरिचिता वृद्धा स्त्रीने प्रेमसे पल्ला पकड़कर जनासे कहा, 'बाई जना! यों घबरायी हुई क्यों दौड़ रही हो? ऐसा क्या काम है?' जनाने अपना काम उसे बतला दिया। वृद्धाने स्नेहपूर्ण वचनोंसे कहा, 'घबराओ नहीं! तुम घरसे काम कर आओ, तबतक मैं तुम्हारे कपड़े धोये देती है।' जनाबाईने कहा, 'नहीं मा! तुम मेरे लिये कष्ट न उठाओ, मैं अभी लौट आती हूँ।' वृद्धाने मुसकराते हुए उत्तर दिया, 'मुझे इसमें कोई कष्ट नहीं होगा, मेरे लिये कोई भी काम करना बहुत आसान है; मैं सदा सभी तरहके काम करती हूँ, इससे मुझे अभ्यास है! इसपर भी तुम्हारा मन न माने तो कभी मेरे काममें तुम भी सहायता कर देना।' जनाबाईको पर पहुँचनेकी जल्दी थी, इधर वृद्धाके वचनोंमें स्नेह टपक रहा था; वह कुछ भी न बोल सकी और मन ही मन वृद्धाकी परोपकार-वृत्तिकी सराहना 1 करती हुई चली गयी। उसे क्या पता था कि यह वृद्धा मामूली स्त्री नहीं, सच्चिदानन्दमयी जगज्जननी है!
च
वृद्धाने बात की बातमें कपड़े धोकर साफ कर दिये। कपड़ोंके साथ ही उन कपड़ोंको पहनने और लानेवालोंका कर्ममल भी धुल गया। थोड़ी देरमें जनाबाई लौटी। धुले हुए कपड़े देखकर उसका हृदय कृतज्ञता भर गया। उसने वृद्धासे कहा, 'माता! आज तुम्हें बड़ा कष्ट हुआ, तुम सरीखी परोपकारिणी माताएँ ईश्वरस्वरूप ही होती हैं।" जना तू भूलती है यह वृद्धा ईश्वरस्वरूपिणी नहीं है, साक्षात् ईश्वर ही है तेरे भगवान्ने वृद्धाका स्वांग सजा है।
वृद्धाने मुसकराते हुए कहा, 'जनाबाई! मुझे तो कोई कष्ट नहीं हुआ, काम ही कौन-सा था। लो अपने कपड़े, मैं जाती हूँ।' इतना कहकर वृद्धा वहाँसे चल दी। जनाका हृदय वृद्धाके स्नेहसे भर गया था; उसे पता ही नहीं लगा कि वृद्धा चली जा रही है। जना कपड़े बटोरने लगी इतनेमें ही उसके मनमें आया कि वृद्धाने इतनाउपकार किया है; उसका नाम पता तो पूछ लूँ, जिससे कभी उसका दर्शन और सेवा-सत्कार किया जा सके।' वृद्धा कुछ ही क्षण पहले गयी थी। जनाने चारों और देखा, रास्तेकी ओर दौड़ी, सब तरफ ढूँढ़ हारी; वृद्धाका कहीं पता नहीं लगा, लगता भी कैसे।
2 episoder