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41. Women in Bachchan's life - 'Shyama' / मधुशाला में कहानी 'श्यामा' की (Madhushala)

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In the previous episode, we started a discussion on women in the life of Dr Harivansh Rai Bachchan and how they influenced his life and poetry. We started with ‘Champa’, who he called ‘Dryad of the Trees’. In this episode, we are talking about Bachchan’s lesser known first wife ‘Shyama’.

पिछले अंक से हमने शुरुआत की थी एक चर्चा की – बच्चन बाबू के जीवन में कुछ महत्वपूर्ण स्त्रियों पर। सबसे पहले बात की थी चम्पा की, जो उनके बचपन के मित्र कर्कल की पत्नी थी और उन्होंने बच्चन बाबू को किस तरह प्रभावित किया। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, आज बात करते हैं श्यामा की।

Poems in this episode:

धुँधली-सी आवाज बुलाती

ऊपर से, पर पंख कहाँ है, (याद कीजिए वृक्ष परी)

छलना-सी धरती है मुझको और मुझे अंबर छलिया-सा।

तन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा।

उसके उस सरलपने से मैंने था हृदय सजाया,

नित नए मधुर गीतों से उसका उर था उकसाया।

उस कल्पनाओं की कल कल्प-लता को था मैंने अपनाया;

बहु नवल भावनाओं का उसमें पराग था पाया।

मंद हास-सा उसके मृदु अधरों पर जो था मँडराया;

औ’ उसकी सुखद सुरभि से - प्रति ‘निशि’ समीप खिंच आया

मनाकर बहुत एक लट मैं तुम्हारी - लपेटे हुए पोर पर तर्जनी के

पड़ा हूँ, बहुत ख़ुश, कि इन भाँवरों में - मिले फ़ॉर्मूले मुझे ज़िंदगी के,

भँवर में पड़ा-सा हृदय घूमता है, - बदन पर लहर पर लहर चल रही है।

न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ, - मगर यामिनी बीच में ढल रही है।

उठा करता था मन में प्रश्न - कि जाने क्या होगा उस पार

निवारण करने में सन्देह - मज़हबी पोथे थे बेकार

चले तुम, पूछा, हैं! किस ओर? - कहा बस तुमने एक ज़बान

तुम्हें थी जिसकी खोज तलाश - उसी का करने अनुसंधान

श्‍यामा रानी थी पड़ी रोग की शय्या पर - दो सौ सोलह दिन कठिन कष्‍ट में थे बीते,

संघर्ष मौत से बचने और बचाने का - था छिड़ा हुआ, या हम जीतें या वह जीते।

एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,

भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,

छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,

विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।

--------------------

Thanks for listening :-) Do write a review and send your comments.

My other Hindi poetry podcast:

Jal Tarang: https://open.spotify.com/show/45OWiFomkPFOMNWhjmKld3

Kitaab Ghar: https://open.spotify.com/show/3sTh2uvc4Ze9rS2ta8xdQp

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⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠Pinterest⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠: https://in.pinterest.com/madhushalapodcast/_created/

⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠http://www.arisudan.com⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠

Credits:

1. 'Madhushala' written by Dr Harivansh Rai Bachchan

2. Autobiographies of Dr Harivansh Rai Bachchan – Kya Bhulun Kya Yaad Karun, Need Ka Nirman Phir, Basere se Door, Dashdwar se Sopan Tak.

3. Kavivar Bachchan ke Saath, and Guruvar Bachchan se Door - Ajitkumar

4. Various YouTube Videos and information from Internet

Keywords: #Bachchan #Madhushala #Philosophy #Hindi #Poetry #Stories #History #Literature #Shyama

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पिछले अंक से हमने शुरुआत की थी एक चर्चा की – बच्चन बाबू के जीवन में कुछ महत्वपूर्ण स्त्रियों पर। सबसे पहले बात की थी चम्पा की, जो उनके बचपन के मित्र कर्कल की पत्नी थी और उन्होंने बच्चन बाबू को किस तरह प्रभावित किया। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, आज बात करते हैं श्यामा की।

Poems in this episode:

धुँधली-सी आवाज बुलाती

ऊपर से, पर पंख कहाँ है, (याद कीजिए वृक्ष परी)

छलना-सी धरती है मुझको और मुझे अंबर छलिया-सा।

तन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा।

उसके उस सरलपने से मैंने था हृदय सजाया,

नित नए मधुर गीतों से उसका उर था उकसाया।

उस कल्पनाओं की कल कल्प-लता को था मैंने अपनाया;

बहु नवल भावनाओं का उसमें पराग था पाया।

मंद हास-सा उसके मृदु अधरों पर जो था मँडराया;

औ’ उसकी सुखद सुरभि से - प्रति ‘निशि’ समीप खिंच आया

मनाकर बहुत एक लट मैं तुम्हारी - लपेटे हुए पोर पर तर्जनी के

पड़ा हूँ, बहुत ख़ुश, कि इन भाँवरों में - मिले फ़ॉर्मूले मुझे ज़िंदगी के,

भँवर में पड़ा-सा हृदय घूमता है, - बदन पर लहर पर लहर चल रही है।

न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ, - मगर यामिनी बीच में ढल रही है।

उठा करता था मन में प्रश्न - कि जाने क्या होगा उस पार

निवारण करने में सन्देह - मज़हबी पोथे थे बेकार

चले तुम, पूछा, हैं! किस ओर? - कहा बस तुमने एक ज़बान

तुम्हें थी जिसकी खोज तलाश - उसी का करने अनुसंधान

श्‍यामा रानी थी पड़ी रोग की शय्या पर - दो सौ सोलह दिन कठिन कष्‍ट में थे बीते,

संघर्ष मौत से बचने और बचाने का - था छिड़ा हुआ, या हम जीतें या वह जीते।

एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,

भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,

छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,

विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।

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1. 'Madhushala' written by Dr Harivansh Rai Bachchan

2. Autobiographies of Dr Harivansh Rai Bachchan – Kya Bhulun Kya Yaad Karun, Need Ka Nirman Phir, Basere se Door, Dashdwar se Sopan Tak.

3. Kavivar Bachchan ke Saath, and Guruvar Bachchan se Door - Ajitkumar

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